उपन्यास >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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कालजयी प्रेम कथा
'नहीं, यहीं गाओ।'
'पैसा देना होगा!'
पार्वती ने अपना आंचल दिखाकर कहा - 'पैसा नहीं रुपया है।'
आंचल में बंधा रुपया देखकर वे लोग दुकान से कुछ दूर पर जाकर बैठी। फिर खंजड़ी बजाकर गले से गला मिलाकर तीनों ने गाना गाया। क्या गाया, उसका क्या अर्थ था, यह सब पार्वती ने कुछ भी नहीं समझा। इच्छा करने पर भी वह नहीं समझ सकती थी। लेकिन उसी क्षण उसका मन देव दादा के पास खिंच गया।
गाना समाप्त करके एक वैष्णवी ने कहा - 'क्या अब भिक्षा दोगी, बेटी?'
पार्वती ने आंचल की गांठ खोलकर उन लोगों को तीनों रुपये दे दिये। तीनों अवाक् होकर उसके मुख की ओर कछ क्षण देखती रहीं।
एक ने कहा - 'किसका रुपया है, बेटी?'
'देव दादा का।'
'वे तुम्हें मारेंगे नहीं?'
पार्वती ने थोड़ा सोचकर कहा - 'नहीं।'
एक ने कहा - 'जीती रहो।'
पार्वती ने हंसकर कहा - 'तुम तीनों जने का ठीक-ठीक हिस्सा लग गया न?'
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