उपन्यास >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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कालजयी प्रेम कथा
चाची के साथ कुछ क्षण बातचीत करने पर पूछा - 'पारो कहां है, चाची?'
'वही ऊपर वाली कोठरी में है।'
देवदास ने ऊपर जाकर देखा कि पार्वती संझाबत्ती दे रही है। बुलाया - 'पारो!'
पहले पार्वती चमत्कृत हो उठी, फिर प्रणाम करके बगल में हटकर खड़ी हो गई।
'यह क्या होता है, पारो?'
इस बात के कहने की आवश्यकता नहीं थी, इसी से पार्वती चुप रही। फिर देवदास ने लजाकर कहाँ - 'जाता हूं, संध्या हो गयी, शरीर अच्छा नहीं है।'
देवदास चला गया।
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