उपन्यास >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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कालजयी प्रेम कथा
इस बार भी पार्वती ने हंसकर कहा-'मनो बहिन, कितने आदमियों की उम्र उन्नीस-बीस वर्ष की है, मैं क्या सबका हिसाब रखती हूँ? मेरे वर ही उम्र उन्नीस-बीस वर्ष की है-यह मैं जानती हूं।'
उसके मुंह की ओर देखकर मनोरमा ने फिर पूछा-'क्या नाम है?'
'सो तो तुम जानती ही हो।'
'मैं कैसे जानूंगी?'
'तुम नहीं जानती? अच्छा लो, मैं कह देती हूं।' जरा हंसकर गम्भीरता के साथ पार्वती ने उसके कान के पास अपना मुंह लगाकर कहा-'नहीं जानती-श्री देवदास!'
मनोरमा पहले तो चमक उठी। फिर थोड़ा धक्का देकर कहा-'इस ठट्टे से काम नहीं चलेगा। यह कहो कि नाम क्या है? अगर नहीं कह सकती हो तो...।
'वही तो मैंने कहा।'
मनोरमा ने पूछा-'यदि देवदास नाम है तो फिर इतना रोती क्यो हो?'
पार्वती का चेहरा सहसा उतर गया। कुछ सोचने के बाद उसने कहा-'यह ठीक है; अब मैं नहीं रोऊंगी।'
'पारो!' क्यों?
'सब बातें खोलकर क्यों नहीं कहती बहिन, मैं कुछ भी नहीं समझ पाती हूं।'
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