उपन्यास >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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कालजयी प्रेम कथा
धीरे-धीरे एक-एक करके सब लोग लौट आए। खाने के समय देवदास को बुलाया गया, किंतु वे उठे नहीं। चुन्नीलाल किसी दिन भी रात को लौटकर बासा में नहीं आए थे, आज भी नहीं लौटे। रात को एक बजे का समय हो गया। बासा में देवदास को छोड़ कोई भी नहीं जागता है। चुन्नीलाल ने बासा में लौटकर देवदास के कमरे के सामने खड़े होकर देखा, किवाड़ लगा है, किंतु चिराग जल रहा है, बुलाया- 'देवदास, क्या अभी जागते हो?'
देवदास ने भीतर से कहा- 'जागता हूं। तुम आज इस समय कैसे लौट आये?'
चुन्नीलाल ने थोड़ा हंसकर कहा- 'देवदास, क्या एक बार किवाड़ खोल सकते हो?'
'क्यों नहीं?'
'तुम्हारे यहां तमाखू का प्रबंध है?'
'हां, है।' - कहकर देवदास ने किवाड़ खोल दिये।
चुन्नीलाल ने तमाखू भरते-भरते कहा- 'देवदास, अभी तक क्यों जागते हो?'
'क्या रोज-रोज नींद आती है?'
'नहीं आती?' कुछ उपहास करके कहा 'आज तक मैं यही समझता था कि तुम्हारे जैसे भले लड़के ने आधी रात का कभी मुख न देखा होगा, किन्तु आज मुझे एक नयी शिक्षा मिली।' देवदास ने कुछ नहीं कहा। चुन्नीलाल ने तमाखू पीते-पीते कहा 'तुम इस बार जब से अपने घर से यहां आये हो, तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं रहती, तुम्हें कौन सा क्लेश है?'
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