लोगों की राय

उपन्यास >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

367 पाठक हैं

कालजयी प्रेम कथा


आज यौवन के कुहिराच्छन्न अंधेरे को उनकी दृष्टि भेद कर गई। वही उस दुर्दांत, दुर्विनीत कैशोर- कालीन अयाचित पद-दलित रत्न समस्त कलकत्ता की तुलना में बहुत बड़ा, बहुत मूल्यवान जंचने लगा। चुन्नीलाल के मुख की ओर देखकर कहा- 'चुन्नी! शिक्षा, विद्या, बुद्धि, ज्ञान, उन्नति आदि जो कुछ है, सब सुख के लिए ही है। जिस तरह से चाहो, देखो, इन सबका अपने सुख के बढ़ाने को छोड़ और कोई प्रयोजन नहीं है।'
चुन्नीलाल ने बीच में ही बात काटकर कहा- 'तब क्या अब तुम लिखना-पढ़ना छोड़ दोगे?'

'हां, लिखने-पढ़ने से मेरा बड़ा नुकसान हुआ। अगर मैं पहले यह जानता कि इतने दिन में इतना रुपया खर्च करके इतना ही सीख सकूंगा, तो मैं कभी कलकत्ता का मुंह नहीं देखता।'

'देवदास, तुम्हें क्या हो गया है?'

देवदास बैठकर सोचने लगे। कुछ देर बार कहा- 'अगर फिर कभी भेंट हुई तो सब बातें कहूंगा।' उस समय प्रात: नौ बजे रात का समय था। बासे के सब लोगों तथा चुन्नीलाल ने अत्यन्त विस्मय के साथ देखा कि देवदास गाड़ी पर माल-असबाब लादकर मानो सर्वदा के लिए बासा छोड़कर घर चले गये। उनके चले जाने पर चुन्नीलाल ने क्रोध से बासे के अन्य लोगों से कहा- 'ऐसे रंगे सियार के समान आदमी किसी भी तरह नहीं पहचाने जा सकते।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book