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उपन्यास >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690

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कालजयी प्रेम कथा

11

दूसरे दिन संध्या के समय चुन्नीलाल ने देवदास के कमरे में आकर देखा कि वे व्यस्त भाव से अपना सब माल-असबाब बांध-छान रहे हैं। विस्मित होकर पूछा- 'क्या नहीं जाओगे?'

देवदास ने किसी ओर न देखकर कहा- 'हां, जाऊंगा।'

'तब यह सब क्या करते हो?'

'जाने की तैयारी कर रहा हूं।'

चुन्नीलाल ने कुछ हंसकर सोचा, अच्छी तैयारी है! कहा - 'क्या तुम सब घर-द्वार वहां पर उठा ले चलोगे?

'तब किसके पास छोड जाऊंगा?'

चुन्नीलाल समझ नहीं सके, कहा 'मैं अपनी चीज-वस्तु किसी पर छोड़ जाता हूं? सभी तो बासे में पड़ी रहती हैं।' देवदास ने सहसा सचेत होकर आंखें ऊपर को उठायीं, लज्जित होकर कहा-'चुन्नी बाबू, आज मैं घर जा रहा हूं।'

'यह क्यों, कब आओगे?'

देवदास ने सिर हिलाकर कहा- 'अब मैं फिर नहीं आऊंगा।' विस्मित होकर चुन्नीलाल उनके मुंह की ओर देखने लगे।

देवदास ने कहा- 'यह रुपये लो, मुझ पर जो कछ उधार हो उसे इससे चुकती कर देना। यदि कुछ बचे तो दास-दासियों में बांट देना। अब मैं फिर कभी कलकत्ता नहीं लौटूंगा।' देवदास मन-ही-मन कहने लगे - कलकत्ता आने से मेरा बड़ा खर्च पड़ा।

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