उपन्यास >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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कालजयी प्रेम कथा
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दूसरे दिन देवदास ने बड़ी मार खायी। उसे दिन भर घर में बंद रखा गया। फिर जब उसकी माता बहुत रोने-धोने लगी, तब देवदास को छोड़ दिया गया। दूसरे दिन भोर के समय उसने भागकर पार्वती के घर की खिड़की के नीचे आकर खड़े होकर उसे बुलाया-'पारो, पारो!'
पार्वती ने खिडकी खोलकर कहा-'देव दादा!'
देवदास ने इशारे से कहा 'जल्दी आओ।' दोनों के एकत्र होने पर देवदास ने कहा 'तुमने तमाखू पीने की बात क्यों कह दी'
तुमने मारा क्यों?'
'तुम पानी लेने क्यों नहीं गयीं?'
पार्वती चुप रही। देवदास ने कहा- 'तुम बड़ी गदही हो, अब कभी मत कहना।'
पार्वती ने सिर हिलाकर कहा-'नहीं कहूंगी'
'तब चलो, बांस से बंसी काट लायें। आज बांध में मछली पकड़नी होगी।'
बैसवाड़ी के निकट एक नोना का पेड़ था, देवदास उस पर चढ़ गया। बहुत कष्ट से बांस की एक नाली नवाकर पार्वती को पकड़ने के लिए देकर कहा-'देखो, इसे छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर पडूंगा। पार्वती उसे प्राणपण से पकड़े रही। देवदास उसे पकड़कर नोना की एक डाल पर पांव रखकर बंसी काटने लगा। पार्वती ने नीचे से कहा-'देव दादा, पाठशाला नहीं जाओगे?'
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