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गायत्री और यज्ञोपवीत

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :67
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9695

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यज्ञोपवीत का भारतीय धर्म में सर्वोपरि स्थान है।


पूर्ण रूप से न सही आंशिक रूप से सभी गायत्री के साधकों को यज्ञोपवीत अवश्य धारण करना चाहिए क्योंकि उपनयन गायत्री का मूर्तिमान् प्रतीक है, उसे धारण किये बिना भगवती की साधना का अधिकार नहीं मिलता। आजकल नये फैशन में जेवरों का रिवाज कम होता जाता है, फिर भी गले में कण्ठी माला किसी न किसी रूप में स्त्री-पुरुष धारण करते हैं। गरीब स्त्रियाँ काँच के मनकों की कण्ठियाँ पहनती हैं, सम्पन्न घरों की स्त्रियाँ चाँदी, सोने, मोती आदि की कण्ठियाँ धारण करती हैं। इन आभूषणों के नाम हार, नैकलेस, जंजीर, माला आदि रखे गये हैं, पर वह वास्तव में कण्ठियों के ही प्रकार हैं। चाहे स्त्रियों के पास कोई अन्य आभूषण हो या न हो, परन्तु इतना निश्चित है कि कण्ठी को गरीब से गरीब स्त्रियाँ भी किसी न किसी रूप में अवश्य धारण करेंगी। इससे प्रकट है कि भारतीय नारियों ने अपने सहज धर्म प्रेम को किसी रूप में जीवित रखा है और उपवीत को किसी न किसी प्रकार धारण किया है।

जो लोग उपवीत धारण डरने के अधिकारी नहीं कहे जाते, जिन्हें कोई दीक्षा नहीं देता, वे भी गले में तीन तार का या नौ तार का डोरा चार गाँठ लगाकर धारण कर लेते हैं। इस प्रकार चिन्ह पूजा हो जाती है। पूरे यज्ञोपवीत का एक तिहाई लम्बा यज्ञोपवीत गले में डाले रहने का भी कही-कहीं रिवाज है।

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