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धर्म एवं दर्शन >> हनुमान बाहुक

हनुमान बाहुक

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :51
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9697

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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र


। 19 ।

अच्छ-बिमर्दन कानन-भानि
दसानन आनन भा न निहारो ।
बारिदनाद अकंपन
कुंभकरन्न-से कुंजर केहरि-बारो ।।

राम-प्रताप-हुतासन, कच्छ,
बिपच्छ,, समीर समीरदुलारो।
पापतें, सापतें, ताप तिहूँतें
सदा तुलसी कहँ सो रखवारो ।।

भावार्थ - हे अक्षयकुमार को मारनेवाले हनुमानजी! आपने अशोक-वाटिका को विध्वंस किया और रावण-जैसे प्रतापी योद्धा के मुख के तेज की ओर देखातक नहीं अर्थात् उसकी कुछ भी परवाह नहीं की। आप मेघनाद, अकम्पन और कुम्भकर्ण - सरीखे हाथियों के मद को चूर्ण करने में किशोरावस्था के सिंह हैं। विपक्षरूप तिनकों के ढेर के लिये भगवान् राम का प्रताप अग्नितुल्य है और पवनकुमार उसके लिये पवनरूप हैं। वे पवननन्दन ही तुलसीदास को सर्वदा पाप, शाप और संताप - तीनों से बचानेवाले हैं।। 19 ।।

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