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उपन्यास >> खजाने का रहस्य

खजाने का रहस्य

कन्हैयालाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9702

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भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य

खजाने का रहस्य


एक

कुछ पुराने संकेतों की शोध करते समय पुरातत्व-वेत्ता डा. भास्कर को यह विदित हुआ कि भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं।

बस फिर क्या था। उन्होंने तुरन्त अपना जीवन-लक्ष्य निश्चित कर लिया। मन-ही-मन संकल्प लिया कि वे इन खजानों की खोज करने में ही अपना जीवन खपा देंगे।

इस दुष्कर कार्य को सम्पन्न करने के लिए घनघोर परिश्रम, स्थिर- बुद्धि और सहनशीलता की जितनी आबश्यकता थी, उससे भी अधिक गोपनीयता भी जरूरी थी। फिर इस नीरस और कष्ट-साध्य कार्य के लिए किसी सहयोगी का होना भी परमाबश्यक था, निपट अकेले उनके बस का वह कार्य न था।

अस्तु शोध-कार्य समाप्त करते ही उन्होंने अपने सरीखे धुन-के-धनी. और साहसी सहयोगी की खोज शुरू कर दी। उस जोखिम-भरे और अनिश्चित लाभ के काम के लिए कोई साथी मिलना आसान न था। वे बहुत दिनों तक उचित सहयोगी के लिए भटकते रहे, किन्तु व्यर्थ! परन्तु एक कहाबत है- 'कमर बाँध करिये जो काम, निश्चित होंय सहायक राम।' इसी उक्ति से प्रेरणा लेकंर डॉ. भास्कर प्रयास करते ही रहे और उनकी निरंतर की जाने वाली साधना ने प्रभाव भी दिखाया - उन्हें माधव नामक एक सहयोगी मिल ही गया।

माधव की न केवल पुरातत्व के कार्यों में रुचि थी, बल्कि वह जीप- कार आदि गाड़ियाँ भी चलाना जानता था, साथ ही भोजन बनाना भी। डा. भास्कर के लिए उसका यह गुण सोने में सुगन्ध बन गया।

उन्होंने माधव से सम्पर्क होने के दूसरे दिन ही एक नयी जीप खरीद ली और उसे माधव को सौंपते हुए बोले- 'माधवजी, आपका सहयोग मिल जाने से मैं अपने कठिन कार्य में अवश्य सफल हो जाऊँगा, यह मेरे अन्तर्मन की आवाज है।'

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