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उपन्यास >> खजाने का रहस्य

खजाने का रहस्य

कन्हैयालाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9702

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भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य

अपनी प्रशंसा किसे अच्छी नहीं लगती है? डी. भास्कर जैसे प्रकाण्ड विद्वान के मुख से अपनी प्रशंसा सुनकर माधव भी प्रसन्न होता हुआ बोला- 'डा. साहब, आप सरीखे विद्वान का साथ प्राप्त करना मेरे लिए भी गौरव की बात है। आप अपने उद्देश्य में सफल हों, यही मेरी कामना है।'

माधव के उत्तर से संतुष्ट होते हुए डा. साहब बोले- 'ठीक है बन्धु! मैं शीघ्र ही सबसे बड़े सम्भावित खजाने (अजयगढ़) की खोज के लिए भारत-सरकार से अनुमति लेने का प्रयास करूँगा।'

अवश्य, शीघ्र ही प्रयास करिए सर! पत्थरों से सिर खुजाने की मेरी अभिलाषा भी तीव्र से तीव्रतर होती जा रही है।' माधव ने कहा। माधव की यह बात सुनकर डा. भास्कर मुस्कराकर बोले- 'शुरू- शुरू में बहुत-से लोगों की यही अभिलाषा रहती है। अभी पहाड़ों, टीलों की काल्पनिक सुखद यात्रा का भाव मन में बसा है, किन्तु जब यथार्थ का सामना करना पड़ेगा और ऐसे-ऐसे भयानक खण्डहरों - जिनमें सिवा चमगादड़ और उल्लुओं के, अन्य पक्षी भी बसेरा न लेते हों - से पाला पड़ेगा तो सारी चौकड़ी भूल जाओगे, बच्चू! तब सारा उत्साह ठण्डा पड़ जायगा।

'ऐसा नहीं होगा, डा. साहब! मैं रसिक प्रकृति का व्यक्ति नहीं हूँ। मुझे शुष्क बालू में भी प्रकृति की स्निग्ध तरलता के दर्शन होते हैं। मेरा मन नीरस स्थानों की यात्रा से भी उचटेगा नहीं।'

'मुझे भी ऐसे ही जीवट वाले, धैर्य-के-धनी साथी की जरूरत थी। प्रभु ने मेरी इच्छा पूर्ण कर दी।' परम आत्म-सन्तोष प्रकट करते हुए डा. भास्कर ने कहा।

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