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उपन्यास >> कुसम कुमारी

कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703

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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी

इसके जवाब में बीरसेन ने अपना कुल हाल अर्थात घर से निकलना, चोर दरवाजे के फाटक पर जाना, पहरेवालों की बईमानी का हाल, कालिन्दी के जेवरों का मिलना (जो उसने रिश्वत में दिए थे) और चोर दरवाजे की राह से बाहर जाना इत्यादि बयान किया। इसके बाद दीवान साहब का इशारा पाकर सब कोई वहां से चले गए और केवल बीरसेन और रनबीर उस कमरे में रह गए क्योंकि रात बहुत जा चुकी थी और उन दोनों के लिए आराम करना बहुत मुनासिब था। इस समय एक कमरे में केवल एक शमादान जलता रह गया और बाकी दीवारगीर इत्यादि की बत्तियां बुझा दी गईं।

केवल दो घड़ी रात बाकी थी जब बीरसेन की आंख खुली और उस समय उन्हें बहुत ही आश्चर्य हुआ जब रनबीरसिंह की चारपाई खाली देखी। ताज्जुब में आकर वे सोचने लगे कि है, यह क्या हुआ? रनबीरसिंह में तो उठने की भी ताकत नहीं थी, फिर चले कहां गए यदि उठने की ताकत हो भी तो उन्हें चारपाई पर से उठना उचित न था क्योंकि जख्म पर पट्टी बंधी थी और हिलने डुलने की उन्हें मनाही कर दी गई थी। आखिर बीरसेन से रहा न गया और पुकार उठे, ‘‘कोई है?’’

कमरे का दरवाजा उढ़काया हुआ था मगर उसके बाहर लौडियां बारी-बारी से पहरा दे रही थीं। बीरसेन की आवाज सुनते ही एक लौंडी दरवाजा खोलकर कमरे के अन्दर आई मगर वह भी रनबीरसिंह की चारपाई खाली देखकर घबरा गई और ताज्जुब में आकर बीरसेन की तरफ देखने लगी।

बीरसेन–(चारपाई पर बैठकर) क्या रनबीरसिंह जो बाहर गए हैं?

लौंडी–जी नहीं, या शायद उस समय बाहर गए हों जब कोई दूसरी लौंडी पहरे पर हो।

बीरसेन–पूछो और पता लगाओ।

वे सब लौंडियां बीरसेन के सामने आईं जो पहले पहरा दे चुकी थीं मगर किसी की जुबानी रनबीरसिंह के बाहर जाने का हाल मालूम न हुआ। धीरे-धीरे यह खबर महारानी कुसुम कुमारी के कान तक पहुंची और वह घबराई उस कमरे में आई। बीरसेन की जुबानी सब हाल सुनकर उसका दिल धड़कने लगा मगर क्या कर सकती थी। जो कुछ थोड़ी रात बाकी थी वह बात की बात में बीत गई बल्कि दूसरा दिन भी बीत गया मगर रनबीरसिंह का कुछ भी पता न लगा।

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