सामाजिक >> परिणीता परिणीताशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।
क्रमश: यह हाल हो गया कि गुरुचरण की तरह वह भी शाम को चाय पीने के समय की प्रतीक्षा करने लगी। उस समय के लिए वह भी उत्सुक रहने लगी।
पहले पहल गिरीन्द्र ललिता से बातचीत करते समय उसे 'आप' कहा करता था।
एक दिन गुरुचरण ने मना कर दिया। कहा- उसे 'आप' क्यों कहते हो गिरीन्द्र, 'तुम' कहा करो। उसी दिन से गिरीन्द्र ने 'आप' की जगह 'तुम' का प्रयोग शुरू कर दिया।
एक दिन गिरीन्द्र ने पूछा- ललिता, तुम चाय नहीं पीती?
ललिता ने सिर झुकाकर गरदन हिला दी। गुरुचरण ने उसकी ओर से कहा- उसके शेखर दादा ने मना कर दिया है। वह स्त्रियों का चाय पीना पसन्द नहीं करता।
कारण सुनकर गिरीन्द्र खुश नहीं हुआ, इतना ललिता की समझ में आ गया।
आज शनिवार है। और दिनों की अपेक्षा आज के दिन की बैठक अधिक देर तक रहती थी। चाय पीने का काम समाप्त हो चुका था, बातचीत हो रही थी। गुरुचरण आज की बातचीत में वैसे उत्साह के साथ शामिल नहीं हो पाते थे। बीच-बीच में कुछ अन्यमनस्क से हो जाते थे।
गिरीन्द्र ने सहज ही इस पर लक्ष्य करके पूछा- जान पड़ता है, आज आपकी तबियत ठीक नहीं है?
गुरुचरण ने हुक्के को मुँह से हटाकर कहा- क्यों? मेरा शरीर तो बहुत अच्छा है।
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