सामाजिक >> परिणीता परिणीताशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।
अक्सर, हरसाल ही समझिए, इस फसल में भुवनेश्वरी कुछ दिन युक्त प्रदेश की यात्रा में बिताती और उधर ही रहा करती थीं। उनको जो अजीर्ण-रोग था, वह इससे बहुत कुछ मन्दा हो जाता था। इस साल भी उनको वही अजीर्ण की शिकायत थी, मगर इतनी अधिक नहीं जितनी नवीन राय ने गुरुचरण से बताई थी। नवीन राय ने अपना काम बनाने के लिए मसलहतन झूठमूठ बहुत बढ़ाकर रोग के बारे में कहा था। अस्तु, इधर नवीन बाबू के यहाँ युक्त प्रदेश की यात्रा की तैयारी होने लगी।
उस दिन सबेरे शेखर अपने कमरे में बैठा एक चमडे़ के बक्स में अपने शौक की चीजें और जरूरी सामान सहेज-सहेजकर भर रहा था।
इतने में अन्नाकाली ने भीतर आकर कहा- शेखर दादा, तुम लोग कल जाओगे न?
शेखर ने उसकी ओर देखकर कहा-- काली जरा अपनी छोटी दिदिया को बुला दे। जो कुछ साथ ले जाना हो, सो अभी आकर दे जाय।
ललिता हर दफे शेखर की मां के साथ जाया करती थी। शेखर यही जानता था कि वह इस दफे भी जायगी।
काली ने गर्दन हिलाकर कहा- अबकी छोटी दिदिया नहीं जायँगी।
शेखर- क्यों? क्यों न जायगी?
काली- वाह, कैसे जायँगी? माघ-फागुन ही में उनका ब्याह होनेवाला है- बाबूजी लड़का खोज रहे हैं।
शेखर जैसे सन्नाटे में आ गया। एकटक शून्य दृष्टि से ताकने लगा।
घर में जो कुछ सुना था वही काली उत्साह के साथ शेखर के आगे कहने लगी- गिरीन्द्र बाबू ने कहा है कि ब्याह में जितने रुपये लगेंगे, सब वे देंगे, मगर लड़का अच्छा होना चाहिए। बाबूजी आज भी दफ्तर न जायँगे। खा-पीकर कहीं लड़का देखने जायँगे। उनके साथ गिरीन्द्र बाबू भी जायँगे।
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