लोगों की राय

सामाजिक >> परिणीता

परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

366 पाठक हैं

‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।


आँसू पोंछकर रुँधे हुए गले को साफ करके गुरु बाबू बोले- क्या कहूँ दादा, बुद्धि भ्रष्ट हो रही थी। दुख की जलन में कुछ न सूझ पड़ता था कि ब्रह्मसमाज में शामिल हो जाऊँ या गले में फन्दा डालकर फाँसी लगा लूँ। अन्त को सोचा, आत्महत्या न करके ब्रह्म के उपासकों में मिल जाना ही ठीक होगा।

नवीन ने पूरी ताकत से चिल्लाकर कहा-- खूब किया! अपने गले में फाँसी नहीं लगाई, जाति और धर्म का गला घोट डाला; शाबाश! अच्छा जाओ, अब हम लोगों को अपना यह काला मुँह मत दिखाना। इस समय जो सलाह- कार साथी-संगी हुए हैं उन्हीं की सोहबत में रहो-सहो- लड़कियों का ब्याह मोचियों-चमारो के साथ करो। - इस तरह कहकर गुरुचरण को बिदा करके नवीन बाबू दूसरी ओर मुँह फेरकर बैठ गये।

बेचारे गुरु बाबू आँसू र्पोछते हुए उठ गये।

पहले तो नवीन बाबू को कुछ न सूझा कि वह इस निरीह मनुष्य के ऊपर क्रोध करके उसको क्या दण्ड दें। गुरुचरण इस समय उनके हाथ के भीतर से बिलकुल बाहर हो गये थे, और उनके जल्दी हाथ आने की सम्भावना भी नहीं है। इसी से कुछ देर तक व्यर्थ आक्रोश से कुढ़ने और तड़पने के बाद-उन्हें नीचा दिखाने का कोई उपाय न सूझ पड़ने पर-नवीन राय ने उसी दिन कारीगर बुलाकर छत से दोनों, घरों में आने-जाने की राह बन्द करा दी। इस तरह उन्होंने अपने जी की जलन बुझाई।

यह खबर बहुत दूर पर परदेश में बैठी भुवनेश्वरी ने शेखर के मुँह से जब सुनी तब रो पडी। बोली-- क्यों शेखर, यह सलाह भला उन्हें किसने दी?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book