सामाजिक >> परिणीता परिणीताशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।
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लगभग तीन महीने बाद एक दिन उतरा हुआ उदास चेहरा लिये गुरुचरण बाबू ने नवीन बाबू की बैठक में जाकर फर्श पर बैठने का इरादा किया ही था कि नवीन बाबू चिल्ला उठे। ''हाँ- हाँ-ना, ना, यहाँ पर नहीं, उस तख्त पर जाकर बैठो। मैं ऐसे बे-वक्त स्नान नहीं कर सकता। बताओ, तुम जातिभ्रष्ट हो गये हो कि नहीं?''
गरीब गुरुचरण बेचारे दूर पडे़ हुए एक तख्त पर बैठ गये। उन्होंने सिर झुका लिया। चार दिन हुए, गुरुचरण ने ब्रह्मसमाज के मन्दिर में विधिपूर्वक दीक्षा ले ली है। अब वे ब्राह्म लोगों के समाज में सम्मिलित हैं। यह खबर, दर्जा-त्रदर्जा, विचित्र विस्तृत व्याख्या के साथ बूढ़े नवीन राय के कानों तक आज अभी पहुँची थी। गुरुचरण को देखते ही नवीन बाबू की आँखों से आग की चिनगारियाँ सी निकलने लगीं। किन्तु गुरुचरण उसी तरह चुपके सिर झुकाये बैठे रहे। उन्होंने किसी से कहे-सुने और पूछे बिना यह काम कर तो डाला, मगर उसी घड़ी से घर में रोना-धोना मचा रहता है। कहीं चैन नहीं है, शान्ति नहीं नजर आती।
नवीन फिर गरजकर बोले- बतलाओ जी, यह समाचार सच है या नहीं?
गुरु बाबू ने अश्रुपूर्ण नेत्र ऊपर उठाकर धीरे से कहा- जी हां, सच है।
''तुमने क्यों ऐसा काम किया? तनख्वाह तो सिर्फ 60 रु० है तुम्हारी-और तुमने-'' क्रोध के मारे नवीन बाबू के मुँह से आगे शब्द ही न निकले।
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