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परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708

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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।


हाथ में पान लिये शेखर सन्नाटे में चुपका बैठा रहा। ''जाती हूँ शेखर दादा'' कहकर पैरों के पास जमीन पर सिर रखकर काली ने प्रणाम किया। ललिता जहाँ खड़ी थी वहीं पृथिवी पर सिर रखकर उसने भी प्रणाम किया। इसके बाद धीरे-धीरे काली के साथ वहाँ से चल दी।

शेखर अपने भले-बुरे की भावना और आत्म मर्यादा लिये विवर्ण मलिन मुख से, विह्वल-विमूढ़ की तरह, स्तब्ध बैठा रहा।

वह आई, जो कुछ कहना था सो कहकर सदा के लिए विदा होकर चली गई; किन्तु शेखर अपने मन की कोई भी बात नहीं कह सका। जैसे उसके कहने के लिए कुछ था ही नहीं, इस तरह सारा अवसर बीत गया। इस समय ललिता जान-बूझकर काली को इसलिए साथ ले आई थी कि पहले की कोई बात न छेड़ी जाय। यह भी मन ही मन शेखर ने समझ लिया। अब उसका शरीर सन्नाने लगा, सिर में चक्कर आ गया। वह उठकर बिस्तर पर आँखें मूँदे हुए लेट रहा।

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