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परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708

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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।

11

गुरुचरण का बिगड़ा हुआ स्वास्थ्य मुँगेर के जलवायु में जाकर भी नहीं सुधरा। साल भर के लगभग बीतने पर वे दुःख का भारी भार अपने सिर से उतारकर संसार से चल बसे। गिरीन्द्र सचमुच उन्हें हृदय से चाहने लगा था, और अन्त तक उनकी यथाशक्ति सेवा-सहायता करता रहा।

मरते समय आँखों में आँसू भरे हुए गुरुचरण बाबू ने उसका हाथ पकड़कर यह अनुरोध किया था कि वह अब कभी किसी दिन गैर की तरह उसके परिवार को न छोड़ दे; इस गहरी मित्रता को समीप की आत्मीयता में परिणत कर दे। इस इशारे का अर्थ यही था कि गिरीन्द्र को वे अपना दामाद बनाना चाहते थे।

गुरुचरण ने गिरीन्द्र से कहा था-- यह सुखदायक सम्बन्ध अगर मैं यहाँ नहीं देख सका, बीमारी वगैरह की उलझन में समय नहीं हो सका, तो कुछ हर्ज नहीं; मैं परलोक में बैठकर देख लूँगा। देखो, मेरी अभिलाषा अधूरी न रह जाय।

गिरीन्द्र ने उस समय खुशी के साथ हृदय से ऐसा करने की प्रतिज्ञा की थी।

गुरुचरण के कलकत्ते वाले मकान में जो किरायेदार रहते थे उन्हीं के जरिए बीच-बीच में भुवनेश्वरी इस परिवार के समाचार जान लिया करती थीं। गुरुचरण के देहान्त का हाल भी वे सुन चुकी थीं।

यहाँ शेखर के घर में एक दारुण दुर्घटना हो गई। एकाएक नवीन बाबू की मृत्यु हो गई। भुवनेश्वरी असीम, असह्म शोक और दुःख के मारे पागल सी हो गईं; बड़ी बहू को सब घर-गिरिस्ती सौंपकर झटपट काशीवास के लिए चली गईं। जाते समय कह गईं कि अगले साल शेखर के ब्याह का प्रबन्ध हो जाने पर खबर देना, मैं आकर ब्याह कर जाऊंगी।

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