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परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708

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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।


ब्याह के बारे में नवीन बाबू स्वयं सब ठीक कर गये थे। अब तक ब्याह हो भी जाता केवल उनके मर जाने से ही साल भर के लिए रुक गया था। लड़की वाले अब और अधिक बिलम्ब नहीं कर सकते थे, इसी से कल आकर वे 'तिलक' की रीति पूर्ण कर गये थे। इसी महीने में व्याह होगा। आज शेखर अपनी माता को लाने के लिए जाने की तैयारी कर रहा था। आलमारी से सामान निकालकर जब वह उसको सन्दूक के भीतर भरने लगा तब बहुत दिनों के बाद ललिता की याद हो आई। यह सब वही किया करती थी।

ललिता वगैरह को गये तीन साल से अधिक समय हुआ। इस बीच में उन लोगों की कोई खबर शेखर को नहीं मिली। उसने जानने की चेष्टा भी नहीं की। शायद इच्छा- भी नहीं थी। क्रमश: ललिता के ऊपर उसके मन में एक प्रकार की घृणा का भाव हो आया था। किन्तु आज एकाएक इच्छा हुई- अगर किसी तरह उसकी कुछ भी खबर मिल जाती तो अच्छा होता। अवश्य ही वह अच्छी दशा मेँ होगी; (क्योंकि गिरीन्द्र गरीब नहीं, पैसेवाला है, यह शेखर को मालूम था) लेकिन, तो भी, कब उसका व्याह हुआ, अपने स्वामी के पास वह सुखी है या नहीं, यही सब बातें सुनने को जी चाहता है।

गुरुचरण के कलकत्ते वाले घर में जो पहले किरायेदार रहते थे वे भी निकल गये- घर खाली पड़ा है। शेखर ने सोचा, चारु के बाप से जाकर पूछूं; उन्हें जरूर ही गिरीन्द्र के समाचार ज्ञात होंगे। दमभर के लिए सन्दूक में सामान रखना छोड़कर वह शून्य दृष्टि से खिड़की के बाहर ताकता हुआ यही सोच रहा था। इसी बीच अचानक घर की पुरानी दासी ने आकर दरवाजे के बाहर खड़े होकर पुकारा-- छोटे भैया, आपको काली की अम्मा ने बुलाया है।

शेखर ने उसकी ओर मुँह करके अत्यन्त अचरज के साथ पूछा- कौन बुलाता है? काली की अम्मा कौन?

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