लोगों की राय

सामाजिक >> परिणीता

परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

366 पाठक हैं

‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।


शेखर सिर झुकाये बैठा रहा। भुवनेश्वरी ने और भी अधिक धीर होकर कहा- ललिता भी मेरे साथ कल जाने को तैयार है। देखूँ, जो उसका कुछ प्रबन्ध कर सकूँ।

अबकी शेखर सिर उठाकर हँसा। बोला- तुम ले जाओगी अपने साथ मां, फिर उसका और क्या प्रबन्ध चाहिए तुम्हारे हुक्म से बढ़कर उसके लिए और क्या चाहिए? लड़के को हँसते देखकर- उनकेँ मन में कुछ आशा हुई। उन्होंने एक बार ललिता के मुँह की ओर देखकर कहा- सुन ली बेटी इसकी बातें? यह समझता है; मैं चाहूँ तो अपनी इच्छा के अनुसार तुझे चाहे जहाँ ले जा सकती हूँ।- मानो इसकी मामी की राय लेनी ही न होगी!

ललिता ने कुछ उत्तर नहीं दिया। शेखर की बातचीत का ढँग देखकर वह मन ही मन अत्यन्त संकुचित हो उठी थी।

''मामी को जताना चाहती हो तो जाकर जता दो, यह तुम्हारी इच्छा की बात है। लेकिन असल में होगा वही जो तुम कहोगी मां, यह मैं भी समझता हूँ, और जिसे तुम ले जाना चाहती हो वह भी समझती है। वह तुम्हारी बहू है।'' इतना कहकर शेखर ने सिर झुका लिया।

भुवनेश्वरी अचरज के मारे सन्नाटे में आ गई। माता के आगे सन्तान की यह कैसी दिल्लगी है! एकटक पुत्र की ओर देखते हुए उन्होंने कहा- क्या कहा? वह मेरी कौन है?

शेखर से सिर नहीं उठाया गया; किन्तु उसने उत्तर दिया। धीरे-धीरे बोला- अभी तो कह चुका हूँ मां। यह बात आज की नहीं है, चार साल से अधिक समय हुआ- तुम सचमुच उसकी मां (सास) हो। मैं इस बारे में और कुछ नहीं कहूँगा। उसी से पूछो, वही कहेगी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book