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परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708

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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।


इतना कहते ही शेखर ने देखा, ललिता गले में आँचल डाल कर मां को प्रणाम करने का उद्योग कर रही है। शेखर भी उठकर उसके पास जा खड़ा हुआ। दोनों ने एक साथ मां के पैरों पर सिर रखकर प्रणाम किया। इसके बाद शेखर उठ- कर चुपचाप चल दिया।

भुवनेश्वरी की आँखों से आनन्द के आँसू बहने लगे। वे ललिता को सचमुच बहुत ही प्यार करती थीं। तब उन्होंने सन्दूक खोलकर अपने सब गहने निकाले, और ललिता को पहनाते समय एक-एक करके धीरे-धीरे सारा रहस्य जान लिया। सब हाल सुनकर उन्होंने कहा- तो इसी से गिरीन्द्र का काली के साथ ब्याह हुआ?

ललिता ने कहा-- हाँ मां, यही बात है। नहीं जानती, गिरीन्द्र बाबू के समान सज्जन पुरुष संसार में कोई है या नहीं। मैंने जब उनसे समझाकर सब हाल कहा तब सुनते ही उन्होंने विश्वास कर लिया कि मेरा ब्याह हो गया है- स्वामी मुझे ग्रहण करें या न करें, यह उनकी इच्छा, लेकिन वे मौजूद हैं।

भुवनेश्वरी ने ललिता के सिर पर हाथ रखकर कहा- है क्यों नहीं बेटी! मैं आशीर्वाद देती हूँ, वह जन्म-जन्म चिरजीवी हो। तुम यहाँ तनिक बैठो बेटी, मैं जाकर अविनाश (बड़े बेटे) से कह आऊँ कि लड़की बदल गई है।

समाप्त

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