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उपन्यास >> पथ के दावेदार

पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


“दो सूट।”

“मिल गए। यह एक और जोड़ा है। अच्छा, धोती एक, दो, तीन....चादर एक, दो, तीन.... ठीक मिल गया। शायद तीन ही जोड़ी थी?”

अपूर्व बोला, “हां तीन ही जोड़ी थी?”

“यह फ्लालेन का सूट है। आप वहां शायद टेनिस खेलते थे। हां तो एक, दो, तीन... उस अलमारी में एक, और एक आप पहने हैं-तो फिर सूट पांच ही जोडे हैं?”

अपूर्व प्रसन्न होकर बोला, “हां ठीक है। पांच ही जोड़े हैं।”

इतने में एक चमकीली वस्तु दिखाई पड़ी। उसे बाहर निकालकर बोली, “यह चेन सोने की है। घड़ी कहां गई?'

अपूर्व प्रसन्न होकर बोला, “खैर है कि बच गई। चेन शायद वह लोग देख नहीं सके। यह मेरे पिता जी की निशानी है।”

“लेकिन घड़ी?”

“यहां है,” कहकर अपूर्व ने घड़ी दिखा दी।

भारती बोली, “चेन और घड़ी मिल गई। अब अंगूठियां बताइए।”

अपूर्व बोला, “मेरे पास एक भी नहीं है।”

“चलो, यह भी अच्छा हुआ। लेकिन सोने के बटन?”

अपूर्व बोला, “टसर के पंजाबी कुर्ते में लगे थे।”

भारती ने अलमारी की ओर देखा। फिर हंसकर बोली, “लगता है कुर्ते के साथ वह बटन भी चले गए।”

फिर पूछा, “ ट्रंक में रुपया था न?”

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