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उपन्यास >> पथ के दावेदार

पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


जिस दो मंजिले मकान में उसने कमरे किराए पर लिए हैं उसकी निचली मंजिल में एक बर्मी परिवार रहता है। सवेरे ऑफिस जाने से पहले उनके परिवार में एक अनर्थकारी दुर्घटना हो गई। उनकी चार लड़कियां हैं- सभी विवाहिता हैं। किसी उत्सव के उपलक्ष में आज सभी उपस्थित हुए थे। भोज के समय सम्मान के विषय में पहले तो लड़कियों में, दामादों में तू-तू, मैं-मैं होने लगी और खून-खराबे तक बात पहुंच गई। अपूर्व खबर लेने गया तो सुना कि इनमें से एक तो मद्रास का चुलिया मुसलमान है। एक चटगांव का बंगाली पोर्तुगीज है। एक ऐंग्लो इंडियन और सबसे छोटा चौथा दामाद एक चीनी है। वह सब कई पीढ़ियों से इस शहर में रहकर चमड़े का व्यवसाय कर रहे हैं।

इस प्रकार पृथ्वीव्यापी सब जातियों का श्वसुर बनने का गौरव अन्य स्थानों में दुर्लभ होते हुए यहां सुलभ है। इन संबंधों का पिता ने विरोध किया था, लेकिन लड़कियों की स्वाधीनता ने उस पर ध्यान नहीं दिया। एक-एक दिन एक-एक करके लड़कियों का घर पर पता नहीं रहा। फिर एक-एक कर वह लौट आईं और उनके साथ आ गया विचित्र दामादों का यह दल। उनकी भाषा अलग, भाव-विचार अलग, कर्म और स्वभाव अलग। शिक्षा-संस्कार किसी के साथ किसी का मेल नहीं मिलता। यह तो हमारे देश की हिंदू-मुस्लिम समस्या की भांति धीरे-धीरे जटिल होती जा रही है। कैसे सुलझेगी?

अपूर्व का मन क्षोभ, दु:ख और विरक्ति से दु:खी हो उठा और लड़कियों की इस सामाजिक स्वतंत्रता को बार-बार कोसने लगा। बर्मा नष्ट हो रहा है। यूरोप नष्टप्राय हो चुका है। इसी प्रकार की सभ्यता को अपने देश में लाने पर हम लोग भी समूल नष्ट हो जाएंगे। इस दुर्दिन में अगर हम संशय छोड़कर अपने पुरातन सिद्धातों का पालन न कर सके तो हमें विनाश से कोई नहीं बचा सकेगा। इसी प्रकार की अनेक विचारधाराओं में डूबा अंधेरे में अकेला बैठा रहा। लेकिन दुर्भाग्य? यह सीधी-सी बात उसके मन में एक बार भी नहीं आई कि जिस मुक्ति मंत्र को वह जीवन का एकमात्र व्रत मानकर तन-मन से ग्रहण करना चाहता है उसी की दूसरी मूर्ति को हाथों से ठेलकर मुक्ति के सच्चे देवता को ही सम्मान सहित दूर हटा रहा है। मुक्ति क्या ऐसी ही कोई छोटी-सी वस्तु है?

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