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उपन्यास >> पिया की गली

पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण


अभी शाम तक तो औऱतें अजीब-अजीब स्वरों में हजारों भावों वाले गीत गा रही थीं। ढोलक बजायी जा रही थी औऱ हल्के-हल्के सुनहरे कहकहे बार-बार वातावरण में बिखर-बिखर जा रहे थे।

और जवान दिल सपनों की गारिमा से धड़क रहे थे।

औऱ एक जादू सा सारे बातावरण पर छाया हुआ था।

फिर यह अकस्मात क्या हो गया कि यूँ लगने लगा कि उसके कदम, उसके बढ़ते हुए कदम उसे एक भंवर की ओर लिए जा रहें हैं।

उसके बढ़ते हुए कदम ठोकर खाते हुए लड़खडा़ते हुए आगे बढ़ रहे हैं और सारी खुशियों पर भय औऱ उदासी की परछाइयाँ छा गई हैं।

औऱ भविष्य के विषय में अजीब-अजीब भयानक बातों की कल्पनायें मस्तिष्क को घेरे हैं।

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औऱ भविष्य का सबसे पहला जीना सामने था।

ब्याह मण्डप पर उसने पहला पैर रखा।

जैसे उसने किसी शोले को छू लिया हो।

फूल अँगारों की तरह डसने लगे।

सामने आग से बहुत डर लगा। अनुभव हुआ उसका सारा अस्तित्व इन लकड़यों के साथ साथ धड़-धड़ जल रहा है।

उसे इन सायों से बहुत डर लगा। अनुभव हुआ वह इन सायों में उलझ कर साँस भी न ले पायेगी।

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