उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
उसके सारे सपने बिखर गये थे और सारे आँसू एक साथ वह निकले थे।
"हाय, अब क्या होगा? अब क्या होगा?"
और कदम थर्रा रहे थे?
इस नयी डगर की ओर चलते हुए अचानक यूं लगने लगा था जैसे वह काँटों पर चल रही है और इधर-उधर से हजारों सैलाब आ-आकर उसे बहा ले जाना चाहते हैं।
अभी शाम तक शहनाइयों के स्वर उसके कानों में हजारों सपने उड़ेल रहे थे औऱ चंचल जवान लड़कियां चुपके से आ-आ कर उसके कानों में कानाफूसियाँ कर जातीं।
कोई उसे दूल्हा के विषय में बताता तो कोई आने वाले दिनों के विषय में - कि हाय वे दिन कैसे होंगे?
और उस रात के बारे में जब वह धड़कते कांपते ह्रदय से किसी के कदमों की चाप को सुनेगी और एक सजे-सजाये विस्तर पर सिमट-सिमट जायेंगी।
और हजारों कलियाँ, हजारों गीत, हजारों बहारें, हजारों हंसियाँ इधर-उधर बिखर जायेंगी।
अभी शाम तक तो कण-कण प्रफुल्लित था।
अभी शाम तक तो लड़कियां गीत गा-गा कर उसे छेड़ रही थीं।
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