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उपन्यास >> पिया की गली

पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण


परन्तु यहाँ प्रश्न तो एक लड़की की जिन्दगी का है, एक शादी के बन्धन का है। एक अबला की इज्जत का है।

सभी कहते रहे कि अब जो होना था हो गया।

जीजा जी ने कहा, "मैं अपना जीवन बेचकर भी अपना कर्ज चुकाऊँगा।"

बारातियों ने कहा,"इस तरह किसी की पगडी़ उछालने के बजाय समझौता कर लेना चाहिये।"

फिर जाने कब, जाने कैसे दीदी की उबलती हुई चीखों पर किसी को दया आयी कि दूल्हा ब्याह मण्डप पर आ बैठा।

औऱ पंडि़त जी सामग्री लेकर सहमी-सहमी आवाज में मंत्र उगलने लगा।

औऱ हवन की आग के शोले वातावरण को पवित्र बनाने लगे।

औऱ दीदी गुडि़या सी बहन को कलेजे से लगाये-लगाये आँगन में लाई और उसके माथे को चूम कर कहा, "जा मेरी रानी, अपने कदमों को ढृढ़ बना। भगवान तेरी रक्षा करेंगे।"

उसे कुछ भी होश न था।

चारों तरफ अजीब-अजीब बातें हो रही थीं।

औरतें कानाफूसियाँ कर रही थीं।

मर्द उसकी तरफ दया भरी दृष्टि से देख-देख कर डरे सहमे-लहजे में धीरे-धीरे बातें कर रहे थे।

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