उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
जीजा जी अपनी जिन्दगी में पहली बार रोये थे।
रो-रो कर उनसे कहा था "इस सुधा को मैंने हमेशा अपनी लड़की की तरह समझा है, लड़की की तरह पाला है। इसकी बहन ने इस बदनसीब को मां की गोद तो नहीं, परन्तु माँ का आँचल, अवश्य दिया है।"
इसके ही कारण उसने कितने ही दुख झेले, कितनी ही बातें सुनी, परन्तु अपने कोख में पैदा हुए बच्चों से भी ज्यादा प्यार से इसकी देख-रेख की है।
आज इसका कोई नहीं है। आज इसका कोई नहीं। हमने बहुत सी आशाओं के साथ इसे आपके कदमों में ला डाला है। यदि आप उसे इस तरह ठुकरा देंगे तो....तो.....इसके अस्तित्व का कण-कण बिखर जायेगा।
यह मर जायेगी और इस बेइज्जती को सहन न कर सकेगी।
इसे इस तरह न ठुकराइये। अगर कोई कसूर हुआ है तो उसकी जिम्मेदारी हम पर है। उस बेचारी ने इस दुनिया का कुछ भी नहीं देखा और चुपचाप घूँघट की आड़ में सुलग रही है।
इस बेचारी का कोई दोष नहीं है। सजा़ हमें दीजिये। इस अबला को इस तरह तूफानों के हबाले न कीजिये न कीजिये।"
और सुना है वह ज़ालिम अन्यायी मर्द टस से मस न हुआ।
चुपचाप खड़ा गुस्से से उबलती हुई आँखों से उनकी ओर देखता रहा।
उसको अपने ऊंचे घराने और अपनी ऊंची नाक का बहुत मान है।
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