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उपन्यास >> पिया की गली

पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण


उससे तो कहा गया था कि जीवन एक बहार है और उसने जीवन भर में ऐसा कुछ कभी कहीं से भी न पाया होगा, जो अब उसे मिलने वाला है।

परन्तु क्या यही बहार है?

क्या यही उजाला है?

क्या यही प्रकाश है?

विधाता ने लड़की का भाग्य भी क्या बनाया है कि यूँ वह एक दिन अनजाने सन्नाटों के हवाले कर दी जाती है। ताकि मूक दिये की भांति आप ही पिघले और एक शब्द तक न कह सके। एक आह तक न भर सके !

धरती की तरह पीड़ा की एक सिसकी तक होठों पर न ला सके औऱ सब कुछ चुपचाप सहती जाये -- सहती जाये।

एक जीवन को खत्म कर दे। दूसरे जीवन में अपने आपको ढाल देने का असफल प्रयास करती रहे -- करती रहे।

सब कुछ लुटा दे औऱ बदले में कुछ न मांगे।

नहीं ! यह आँसू तो केवल उसकी ही आँखों में नहीं हैं।

सभी तो रो रहे हैं।

सभी तो डर रहे हैं।

कल से अब तक कितनी ही बार दीदी बेहोश हो-हो कर गिर पडी़ है।

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