उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
कितनी ही बार सभी आ-आ कर उसे गले से लिपटा लेते हैं औऱ आँखें बन्द करके अपने हृदय के भय को दबा-दबा कर उसे आशीर्वाद देते हैं और तब अकस्मात रो उठते हैं और आँचल से मुँह दबा कर चले जाते हैं।
हाय ! आखिर यह सब हो क्या रहा है कि कोई उससे आँख तक नहीं मिला रहा है?
आखिर उसे भी तो कोई बताये कि यब सब हो क्या रहा है?
कल तक तो ऐसी कोई बात न थी। सभी कहते थे कि सुधा कितनी भाग्यशाली है कि इतने बडे़ घराने में उसकी शादी हो रही है।
सभी उसके नसीब पर ईर्ष्या करते थे।
पिछले एक साल से उसे बार-बार यही बताया जा रहा था कि वह घराना, जहां उसे जाना है, बहुत बडा़ है। वे लोग बहुत धनी हैं। उनके बडे़ नाम हैं। बडी़ मर्यादा है औऱ उसके होने वाले पति बहुत सुन्दर हैं।
सुधा उस घर में राज्य करेगी।
फिर यह एकाएक क्या हो गया है कि सभी एक साथ डरे हुए हैं?
सभी सहमे हुए हैं और आज उसकी बिदाई के समय कोई भी उसके पास तक नहीं आ रहा है।
दीदी-दीदी तुम कहां हो ? तुम कहां हो, दीदी ?
मैं कितनी ही बार तुम्हें बुलवा चुकी हूं, दीदी ?
अकेले अपने आपको इस तरह दुख न दो। तुम्हीं दुख करोगी तो मेरा क्या होगा?
जीवन में मेरा सारा सहारा, सारी शक्ति तो तुम्हीं हो।
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