उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
ये....यह आकाश जिसके साये तले ममता के साये मिले औऱ आज मुझे इन्हीं से विलग किया जा रहा हैं? कहीं दूर धूप की तपिश में जलने के लिए भेजा जा रहा है?
नहीं-नहीं.......
हाय....हाय इन चीखों को कैसे रोकूँ?
नहीं-नहीं, मुझ कहीं न ले जाओ।
मुझे इन्हीं पैरों में पडा़ रहने दो। एक कोने में पडा़ रहने दो। इस सुख की छाया को मुझसे न छीनो, न छीनो।"
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''परन्तु नहीं, जाना ही होगा।
यह पैर अब मुझे पनाह न दे पायेंगे।
सदैव दृढ़ता से मेरी रक्षा करने वाले ये पैर आज कंपकपा उठे हैं। मुझे जाना होगा।
अलविदा। ऐ मेरी जिन्दगी के आकाश।
मैं जा रहीं हूँ।......आप न रोयिए. जीवन के इस लम्बे सफर के लिए यह आँसू न दीजिये।
कहीं ऐसा न हो सारी उमर मैं इन आँसुओं को याद करके तड़पती रहूँ।
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