उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
आपकी आँखों ने तो कभी आँसू बहाये ही नहीं। आज इस तरह आँसू लुटा-लुटा कर मेरे दहेज को इतना बोझल न बनाइये।
पछतावों का इतना बोझ न लादिये कि कई जन्मों तक उतार न सकूँ।
भगवान के लिए आप चुप हो जायें।
हाय मेरे कदम नहीं रुकते।
मेरे कदम मेरे शरीर का बोझ उठाने में असमर्थ होते जा रहे हैं।
आप ही ने तो मुझे इतना कुछ सिखाया। आप आज भूल जायें कि मैं कभी आपके घर एक अनाथ बेसहारा लड़की बनकर आई थी औऱ आपने कदमों से उठा कर मुझे अपने कलेजे से लगा लिया था।
भूल जाइए कि मैं कोई थी।
आप मेरी दीदी का ध्यान रखें। मेरी दीदी को ढाढस बंधाइये। हां - उसे दुख न करने दीजिये। बस मैं आपसे और कुछ नहीं चाहती।
औऱ अब मुझे बिदा कीजिए।"
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द्वार से ज्यूं ही निकली बहुत सी रुकी हुई चीखों ने उसका पीछा किया।
कदम रुक गये। कदम थम गये।
इतना दुख कैसे सहे?
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