उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
एक-एक करके रस्में अदा की जा रही हैं। जो कोई भी आता है, वह दोनों मुटि्ठयों में तिल मिला नमक भर सामने वाले की हथेलियों में डाल देती है, जो उसी नमक को वापस कर देता है तीन बार ऐसा करने के बाद उसके हाथ पर कुछ न कुछ रख दिया जाता है। कोई अंगूठी दे रहा है, कोई रुपये, कोई कपडें औऱ कोई खाली आशीर्वाद।
ये उसकी जेठानियां है।
ये जेठ हैं।
ये चाचे हैं।
यह नन्दों के रिश्तेदार हैं।
कितने ही रिश्ते हैं, कितने ही लोग हैं, कितने ही आशीर्वाद हैं?
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और अकस्मात उसका घूंघट पलट दिया जाता है।
सिर्फ औऱतें औऱ बच्चे रह गए हैं जो उसे चारों तरफ से घेरे है।
इन्हीं बच्चों में से सबसे पहले वह नन्दी को दखती है।
नन्दी उसके पास बैठा है। बडी़ देर से बैठा है। बड़ी देर से उससें बातें कर रहा है।
एक-एक बात पूछ रहा है।
बात-बात पर हँस पड़ता है।
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