उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
इसको मिल हुए रुपये औऱ गहने औऱ दूसरी तमाम वस्तुएँ बटोर-बटोर कर रख रहा हैं।
कहता है, "भाभी कितने ही दिनों से तुम्हारा इन्तजार कर रहा था।”
बार बार भाभी कहता है तो बडा़ अजीब लगता हैं। सारे घर में सबसे छोटा है, सबका लाड़ला है।
सभी कह रहे हैं, "चल नन्दी, खाना खा ले।"
"नहीं मैं भाभी के साथ खाऊंगा।"
“चल नन्दी अब तु्म्हे नींद आई होगी, सो जा।”
"नहीं भैया, अभी तो मैंने भाभी को देखा भी नही। इतना लम्बा तो घूंघट काढे़ हैं।"
“कल देख लेना सुधा तो अब यहीं रहेगी।”
"कल तो कल आयेगा भैया। आप बडे़ लोग सब जाइए न। बेचारी इस तरह शर्मा रही हैं। हम इनकी बातें तो सुनें, जाइए न।”
सभी हँस पड़ते हैं।
समय चुपचाप खिसक रहा हैं।
नई दुनिया की नई बातें उसे अपने बाहुपाश में लिये ले रही हैं।
वह तो सब भूलती जा रही है। कान इन नयी आवाजों से परिचित होने का प्रयास कर रहे हैं।
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