उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
अचानक नन्दी कहता है "भाभी की गोद में मैं बैठूँ?”
सभी हंस पड़ते है।
"तुम बैठोगे। कुम्हारी तो मूँछें निकल आई हैं नन्दी, तुम अब छोटे थोडे़ ही हो।"
"वाह। सबसे तो छोटा हूं। क्या हुआ जो मूछें निकल आई हैं, हूं तो बच्चा ही न।"
ब्राह्मण कहता है, शुभ मुहुर्त बीता जा रहा है। मंझली भौजाई ने इतनी देर क्यों कर दी?
मुन्ने के रोने की आवाज यहां तक आ रही है परन्तु वह मुन्ने को ला क्यों नहीं रही हैं?
नन्दी ज़िद करता है "मां मैं बैठूंगा, भाभी की गोद में मैं बैठूंगा।"
मुन्ना अभी तक नहीं आया।
रस्म पूरी करनी है। इतनी देर क्यों की जाये?
"बहू मुन्ने को ले भी आ न।" मां आवाज देती है।
ब्राह्मण उसी मंत्र को बार-बार दुहरा रहा है।
तभी जाने किसने कह दिया, नन्दी के बैठने में हर्ज ही क्या है? देर क्यों की जाये, उसे बिठा दिया जाये।
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