उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
और तब चारों ओर हँसियों औऱ उल्लास के तूफानों में किसी को ध्यान ही नही रहता औऱ नन्दी उठ कर उसकी गोद में आ बैठता है औऱ घूंघट को छूकर जोर से हँस पड़ता है।
औऱ हँसते-हँसते कहता है "भाभी।”
सभी हँसते रहते हैं। सुधा पांच रुपये का एक नोट नन्दी को देती है और वह झुककर उसके पैरों को छू कर प्रणाम करके अपनी जगह पर आ बैठता है।
रस्म खत्म हो जाती है।
उसका दिल अभी तक कँपकपा रहा है।
माथे पर पसीने रेंग आये हैं।
ये कैसे रिवाज हैं? हाय, वह तो मारे लाज के मरी जा रही है। बार-बार एक ही आवाज सुनाई पड़ रही है "तुम्हारी गोद सदा भरी रहे।"
वह शर्म से दुहरी हुई जा रही है।
तब धीरे-धीरे वातावरण के शोर पर मद्धिम सा सन्नाटा छा जाता है।
नन्दी अभी तक उसी के पास बैठा है। उसी तरह टुकुर-टुकुर उसे देख रहा है। जाने क्यों इस सारे वातावरण में वही सबसे अपना लग रहा है। इतनी जल्दी इतने पास आ गया। लगता है वह एक ज़माने से उसे जानती है।
बडी़-बडी़ आंखों को उसके चेहरे से एक क्षण के लिए भी नहीं हटाता।
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