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उपन्यास >> पिया की गली

पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण

आकाश

मेरे जीवन के आधार,

तुम तो जीवन के इस मधुर सपने को अधूरा छोड़ कर चले गये परन्तु क्या मैं तुम्हें एक क्षण के लिए भी भूल भी पाती हूँ?

नहीं, मेरे प्राण, एक-एक साँस में तुम्हारी ही बातों की खुशबुयें हैं।

इस दासी की तो आरती भी पूरी न हो पाई थी कि देवता छोड़कर चला गया।

देवता कठोर निकला। इतने बचन दिये थे। मधुर झरनो से भी सुन्दर गीत कानों के रास्ते आत्मा में उडे़ले थे। यूँ लगा था कि जीवन, जो सूना पत्थर था, पिघल कर शबनम की बूंदों के समान कोमल हो गया है।

इससे पहले भी मैं जी रही थी, या जीवन की कोई अभिलाषा मेरे अन्दर थी यह तो मैं जानती भी नहीं।

एक रात जब तुमने मेरा घूँघट उलट दिया था औऱ मेरी आँखों में अपनी नीली आँखें गाड़ दी थीं और मेरे होंठों को छुआ था उस समय...सच कहती हूँ, यूँ लगा था जैसै एक नई आत्मा मेरे निर्जीव शरीर में इन्हीं होंठों के रास्ते रिसती आ रही है।

कानों ने एक नई रागिनी सुनी, आँखों ने एक नया संसार देखा, कल्पना ने एक नया सपना देखा।

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