उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
"हूँ-हूँ, अब उठो भाभी। भैया बडी़ देर से जाग रहे हैं। सभी सो गये हैं। चलो तुम्हें उनके कमरे में छोड़ आऊँ तो स्वयं सोने का ठिकाना करूँ। हाय, भगवान, इस ब्याह में मै कितनी थक गई।"
वह हिली तक नहीं। बहाना बनाने लगी जैसे कुछ सुना तक नहीं।
"नहीं भाई, ऐसी नही चलेगी। अब उठों, वह सामने रहा तुम्हारा कमरा। हाँ हाँ, उठो भी नींद आई होगी न। तुम्हारा बिस्तर उसी कमरे में है। वही तुम्हारी मंजिल है, वही तुम्हारा ठिकाना है। इस इतने बड़े घर में वही एक कमरा तुम्हारा है। यहाँ कब तक बैठी रहोगी? चलो भाभी, कदमों को सँभालो जाना तो है ही दरवाजा खुला है। वहाँ तक तो मैं तम्हारे साथ हूँ। आगे तुम जानो और.... (हँसी) हाँ सुनो बहुत थक गई हो न। वहाँ दूध रखा होगा, पी लेना (हँसी) अच्छा सुबह मिलेगें।..... अच्छा।"
औऱ पीछे दरवाजा बन्द हो गया।
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