लोगों की राय

उपन्यास >> श्रीकान्त

श्रीकान्त

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :598
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9719

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

337 पाठक हैं

शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास


दुबारा अनुरोध की जरूरत ही नहीं हुई, मैं गुड़मुड़ होकर उसी स्थान पर लेट गया। परन्तु नींद नहीं आई। अधमुँदी आँखों से मैं चुपचाप आकाश में बादलों और चाँद की आँख-मिचौनी देखने लगा। यह डूबा, वह निकला, फिर डूबा, हँसा। और कान में आने लगी जल-प्रवाह की, वही सतत हुंकार। यह एक ही बात प्राय: मेरे मन में आया करती है कि मैं उस दिन इस प्रकार सब कुछ भूल-भालकर बादलों और चन्द्रमा के बीच कैसे डूब गया था? तन्मय होकर चाँद देखने की अवस्था तो मेरी उस समय थी नहीं। किन्तु बड़े-बूढ़े लोग पृथ्वी के अनेक व्यापार देख-सुनकर कहा करते हैं कि यह बाहरी चाँद कुछ नहीं है, बादल भी कुछ नहीं है - सब माया है, मिथ्या है, दरअसल कुछ चीज है तो यह अपना मन है। वह जब जिसे जो दिखता है विभोर होकर तब वह केवल वही देखता है। मेरी भी यही दशा थी। इतने प्रकार की भयंकर घटनाओं में से, इस प्रकार सही-सलामत बाहर निकल आने के उपरान्त, मेरा निर्जीव मन, उस समय, शायद, ऐसी ही किसी एक शान्त तसवीर के भीतर विश्राम लेना चाहता था।

इतने में घण्टे-दो घण्टे निकल गये, जिनकी मुझे खबर ही नहीं हुई। एकाएक मुझे मालूम हुआ कि मानो चाँद बादलों के बीच एक लम्बी डुबकी लगा गया है, और एकाएक दाहिनी ओर से बाईं ओर जाकर अपना मुँह बाहर निकाल रहा है। गर्दन कुछ ऊपर उठाकर देखा, नौका अब उस पार जाने की तैयारी में है। प्रश्न करने अथवा कुछ कहने का उद्यम भी, शायद उस समय मुझमें शेष नहीं था; इसलिए मैं फिर उसी तरह लेट गया। फिर वही आँखें भरकर प्रवाह का गर्जन-तर्जन देखने-सुनने लगा। शायद इस तरह एक घण्टा और भी बीत गया।

खस्-से-रेत के टीले पर नौका टकराई। व्यस्त होकर मैं उठकर बैठ गया। अरे, यह तो इस पार आ पहुँचे। परन्तु यह जगह कौन-सी है? घर मेरा कितनी दूर है? रेत के ढेर के सिवाय और तो कहीं कुछ दीख ही नहीं रहा है? सवाल करने के पहले ही एकाएक कहीं पास ही कुत्तों का भूँकना सुनकर मैं और भी सीधा होकर बैठ गया। निश्चय ही कहीं पास में बस्ती है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book