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कविता संग्रह >> संभाल कर रखना

संभाल कर रखना

राजेन्द्र तिवारी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :123
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9720

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मन को छूने वाली ग़ज़लों का संग्रह



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समझे न उनकी बात, इशारों के बावजूद


समझे न उनकी बात, इशारों के बावजूद।
डूबे हैं हम तो यार, किनारों के बावजूद।।

दिखती नहीं है आग, शरारों के बावजूद,
काली है कितनी रात, सितारों के बावजूद।

गुलशन को, जाने किसकी नज़र लग गई है यार,
खिलते नहीं हैं फूल, बहारों के बावजूद।

है रहबरों की भीड़, प’ मंज़िल कोई नहीं,
दर-दर भटक रहे हैं, सहारों के बावजूद।

टी.वी. को देख देख के, नस्लें बिगड़ गईं,
तहज़ीब के, तमाम इदारों के बावजूद।

चेहरों पे उनके कोई शिकन तक नहीं दिखी,
इतनी तबाहियों के नज़ारों के बावजूद।

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Abhilash Trivedi

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