लोगों की राय

कहानी संग्रह >> वीर बालक

वीर बालक

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9731

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

178 पाठक हैं

वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ


कुमार चण्ड को पिता की इस बात से तनिक भी दुःख नहीं हुआ। उन्होंने भीष्मपितामह की प्रतिज्ञा के समान प्रतिज्ञा करते हुए कहा- 'पिताजी! मैं आपके चरणों को छूकर प्रतिज्ञा करता हूँ कि मेरी नयी माता से जो पुत्र होगा, वही सिंहासनपर बैठेगा और मैं जीवनपर्यन्त उसकी भलाई में लगा रहूँगा।’ राजकुमार की प्रतिज्ञा सुनकर सब लोग उनकी प्रशंसा करने लगे।

बारह वर्ष की राजकुमारी का पाणिग्रहण पचास वर्ष के राणा लाखा ने किया। इस नवीन रानी से उनके एक पुत्र हुआ, जिनका नाम 'मुकुल' रखा गया। जब मुकुल पाँच वर्षके थे, तभी गयातीर्थ पर मुसलमानों ने आक्रमण किया। तीर्थ की रक्षा के लिये राणा ने सेना सजायी। इतनी बड़ी पैदल यात्रा तथा युद्धसे जीवित लौटने की आशा करना ही व्यर्थ था। राजकुमार चण्ड से राणा ने कहा- 'बेटा! मैं तो धर्म-रक्षा के लिये जा रहा हूँ। तेरे इस छोटे भाई 'मुकुल' की आजीविका का क्या प्रबन्ध होगा?' चण्ड ने कहा- 'चित्तौड़ का राजसिंहासन इन्हीं का है।' राणा नहीं चाहते थे कि पाँच वर्ष का बालक सिंहासन पर बैठाया जाय।

उन्होंने चण्ड को अनेक प्रकार से समझाना चाहा, परंतु चण्ड अपनी प्रतिज्ञा पर स्थिर रहे। राणा के सामने ही उन्होंने मुकुल का राज्याभिषेक किया और सबसे पहले स्वयं उनका सम्मान किया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book