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वीर बालक

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9731

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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ


राणा लाखा युद्ध के लिये गये और फिर नहीं लौटे। राजगद्दी पर मुकुल को बैठाकर चण्ड उनकी ओर से राज्य का प्रबन्ध करने लगे। उनके सुप्रबन्ध से प्रजा प्रसन्न एवं सम्पन्न हो गयी। यह सब होने पर भी राजमाता को यह संदेह हो गया कि चण्ड मेरे पुत्र को हटाकर स्वयं राज्य लेना चाहते हैं। उन्होंने यह बात प्रकट कर दी। जब राजकुमार चण्ड ने यह बात सुनी, तब उन्हें बड़ा दुःख हुआ। वे राजमाता के पास गये और बोले- 'माँ! आपको संतुष्ट करनेके लिये चित्तौड़ छोड़ रहा हूँ किंतु जब भी आपको मेरी सेवा की आवश्यकता हो, मैं समाचार पाते ही आ जाऊँगा।’

चण्ड के चले जाने पर राजमाता ने जोधपुर से अपने भाई को बुला लिया। पीछे स्वयं रणमल्ल जी भी बहुत-से सेवकों के साथ चित्तौड़ आ गये। थोड़े दिनों में उनकी नीयत बदल गयी। वे अपने दौहित्र को मारकर चित्तौड़ का राज्य हड़प लेने का षडयन्त्र रचने लगे। राजमाता को जब इसका पता लगा, वे बहुत दुःखी हुईं। अब उनका कहीं कोई सहायक नहीं था। उन्होंने बड़े दुःख से चण्ड को पत्र लिखकर क्षमा माँगी और चित्तौड़ को बचाने के लिये बुलाया। संदेश पाते ही चण्ड अपने प्रयत्न में लग गये। अन्त में चित्तौड़ को उन्होंने राठौर के पंजे से मुक्त कर दिया। रणमल्ल तथा उसके सहायक मारे गये तथा उनके पुत्र बोधाजी भाग गये। कुमार चण्ड आजीवन राणा मुकुल की सेवा में लगे रहे।

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