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वीर बालक

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9731

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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ



वीर बालक पुत्त


एक समय दिल्ली का मुगल बादशाह अकबर बहुत बड़ी सेना लेकर चित्तौड़ जीतने आया। चित्तौड़ के राणा उदयसिंह यह देखकर डर के मारे चित्तौड़ छोड़कर दूसरी जगह भाग गये और उनका सेनापति जयमल शहर की रक्षा करने लगा। पर एक रात को दूर से अकबर ने उसे गोली से मार डाला। चित्तौड़-निवासी अब एकदम घबरा उठे, पर इतने में ही चित्तौड़ का एक बहादुर लड़का स्वदेश की रक्षा के लिये मैदान में आ गया।

उस वीर बालक का नाम था पुत्त। उसकी उम्र केवल सोलह वर्ष की थी। पुत्त था तो बालक, पर बड़े-बड़े बहादुर आदमियों के समान वह बड़ा साहसी और बलवान् था। उसकी माता, बहिन और स्त्री ने युद्ध में जाने के लिये उसे खुशी से आज्ञा दे दी। यही नहीं, वे भी उस समय घर में न बैठकर हथियार लेकर अपने देश की रक्षा करने के लिये बड़े उत्साह के साथ युद्धभूमि में जा पहुँचीं।

अकबर की सेना दो भागों में बँटी थी। एक भाग पुत्त के सामने लड़ता था और दूसरा भाग दूसरी ओर से पुत्त को रोकने के लिये आ रहा था। यह दूसरे भाग की सेना उसकी माँ, पत्नी और बहिन का पराक्रम देखकर चकित हो गयी। दोपहर के दो बजते-बजते पुत्त उनके पास पहुँचा; देखता क्या है कि बहिन लड़ाई में मर चुकी हैं, माता और स्त्री बन्दूक की गोली खाकर जमीन पर तड़फड़ा रही हैं। पुत्त को पास देखकर माता ने कहा- 'बेटा! हम स्वर्ग जा रही हैं, तू लड़ाई करने जा। लड़कर जन्मभूमि की रक्षा कर या मरकर स्वर्ग में आकर हमसे मिलना।’ इतना कहकर पुत्त की माँ ने प्राण छोड़ दिये। पुत्त की पत्नी ने भी स्वामी की ओर धीर भाव से एकटक देखते हुए प्राणत्याग किया। पुत्त अब विशेष उत्साह और वीरता से फिर शत्रुसेना का मुकाबला करने लगा। माता की मरते समय की आज्ञा पालन करने में उसने तनिक भी पैर पीछे नहीं किया और जन्मभूमि के लिये लड़ते-लड़ते प्राण त्याग दिये। इस प्रकार इस एक ही घर के चार वीर नर-नारी स्वर्ग पधारे और उनकी कीर्ति सदा के लिये इस संसार में कायम रह गयी।

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