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वीर बालक

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9731

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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ



वीर बालक दुर्गादास राठौर


जोधपुर नरेश महाराज यशवन्त सिंह जी के पास उनकी सांड़िनियों (ऊँटनियों ) के रक्षक ने यह सूचना पहुँचायी कि एक साधारण किसान के लड़के ने एक सांड़िनी को मार डाला है। महाराज ने उस किसान को पकड़कर लाने को कहा। किसान का नाम था आसकरण। वह राठौर राजपूत था। महाराज के सामने आने पर उसने अपने बालक को आगे करके कहा- 'श्रीमान का अपराधी यही है।’

महाराज ने क्रोध से डाँटकर पूछा- 'तुमने सांड़िनी मारी? ’ बालक ने निर्भयता पूर्वक स्वीकार कर लिया। पूछने पर उसने कहा- 'मैं अपने खेत की रक्षा कर रहा था। सांडिनियों को आते देखकर मैंने आगे दौड़कर चरवाहे को मना किया, परंतु उसने मेरी बात पर ध्यान ही नहीं दिया। हमारी फसल नष्ट हो जाय तो हम खायँगे क्या? इसलिये जब एक सांडिनी ने मेरे खेत में मुख डाला, तब मैंने उसे मार दिया। दूसरी सांडिनियाँ और चरवाहा भी भाग गया।’

एक छोटा-सा बालक एक मजबूत ऊँट को मार सकता है, यह बात मन में जमती नहीं थी। महाराज ने पूछा- 'तुमने सांडिनी मारी कैसे? ’

बालक ने इधर-उधर देखा। एक पखालिया ऊँट सामने से जा रहा था। वह उस ऊँट के पास गया और कमर से तलवार खींचकर उसने ऐसा हाथ मारा कि ऊँट की गर्दन उड़ गयी। उसका सिर गिर पड़ा। महाराज उस बालक की वीरता पर बहुत प्रसन्न हुए। उसे उन्होंने अपने पास रख लिया। यही बालक इतिहास-प्रसिद्ध वीर दुर्गादास हुए। औरंगजेब-जैसे क्रूर बादशाह से इन्होंने यशवन्तसिंह की रानी तथा राजकुमार अजीतसिंह की रक्षा की। मारवाड़ राज्य का यवनों के पंजे से इन्होंने ही उद्धार किया।

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