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वीर बालिकाएँ

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9732

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साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ

चित्तौड़ के सम्मान की रक्षा का एक ही उपाय था-कृष्णा की मृत्यु। उस सुन्दर सुकुमारी राजकुमारी को मारेगा कौन? महाराणा की ओंखें रोते-रोते लाल हो गयी थीं। महारानी के दुःख का कोई पार नहीं था; लेकिन कृष्णा ने यह सब सुना तो वह ऐसी प्रसन्न हुई, जैसे उसे कोई बहुत बड़ा उपहार मिल गया हो। उसने कहा- 'माँ! तुम क्षत्राणी होकर रोती हो? अपने देश के सम्मान के लिये मर जाने से अच्छी बात मेरे लिये और क्या हो सकती है? माँ! तुम्हीं तो बार-बार मुझसे कहा करती थीं कि देश के लिये मर जाने वाला धन्य है। देवता भी उसकी पूजा करते हैं।'

अपने पिता महाराणा से उस वीर बालिका ने कहा-  'पिताजी! आप राजपूत हैं, पुरुष हैं और फिर भी रोते हैं? चित्तौड़ के सम्मान की रक्षा के लिये तो मैं सौ-सौ जन्म लेकर बार-बार मरनेको तैयार हूँ। मुझे एक प्याला विष दे दीजिये।

कृष्णा को विष का प्याला दिया गया। उसने कहा- भगवान् एकलिंग की जय!' और गटागट पी गयी।

जब कृष्णा की लाश निकली, उस देशपर बलिदान होने-वाली बालिका के लिये जयपुर-नरेश ने भी हाथ जोड़कर सिर झुका दिया। उनकी आँखों से भी आँसू टपकने लगे।

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