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वीर बालिकाएँ

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9732

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साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ

चम्पा

बड़े-बड़े राजपूत राजाओं ने अकबर के सामने सिर झुका दिया था और उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी; किंतु महाराणा प्रताप ही ऐसे थे जो अकबर के आगे कभी झुके नहीं। उन्होंने बड़े-बड़े कष्ट उठाये, किंतु हिंदूकुल के गौरव को सुरक्षित रखा। इन्हीं हिंदू-कुल-सूर्य महाराणा प्रताप की प्यारी पुत्री का नाम चम्पा था।

अकबर की सेना ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया था। महाराणा प्रताप अरावली पर्वत की घाटियों, गुफाओं और बनों में अपने परिवार के साथ भटकते फिर रहे थे। महारानी और राजकुल के सुकुमार बालक, पता नहीं कितना कष्ट का रहे थे। लेकिन अपने धर्म और देश की स्वतन्त्रता तथा गौरव के लिये महाराणा ने पूरे पचीस वर्ष यह अपार कष्ट उठाया।

इस कठिन समय में महाराणा को बच्चों के साथ दिन-दिन भर पैदल घूमना पड़ता था। रात को भूमि पर या चट्टानों पर वे सोते थे। बहुधा बच्चों को उपवास करना पड़ता था। तीन-तीन, चार-चार दिनों पर कहीं जंगली बेर और घास की रोटियाँ मिल पाती थीं। कई बार ऐसा अवसर आता था कि वे घास की रोटियाँ भी बनाते-बनाते छोड़कर भागने को विवश हो जाते थे।

महाराणा प्रताप की पुत्री चम्पा ग्यारह वर्ष की थी और एक पुत्र था महाराणा के जो उस समय चार वर्ष का था। एक दिन दोनों बालक एक नदी के किनारे खेल रहे थे। छोटे कुमार को भूख लगी थी। वह रोटी माँगने लगा और रोने लगा। उस चार वर्ष के बच्चे को क्या पता कि उसके पिता-माता के पास आज अपने युवराज के लिये रोटी का एक टुकड़ा भी नहीं है। चम्पा ने अपने छोटे भाई को कहानी सुनाकर फूलों की माला पहिनाकर बहला दिया। राजकुमार भूखा ही सो गया।

चम्पा जब छोटे भाई को गोद में लेकर माता के पास सुलाने आयी तो देखा कि महाराणा चिन्ता में डूबे बैठे हैं। उसने पूछा- 'पिताजी! आप चिन्तित क्यों हैं?'

महाराणा ने कहा- 'बेटी! हमारे यहाँ एक अतिथि आ गये हैं। आज ऐसा भी दिन आ गया कि चित्तौड़ के राणा के यहाँ से अतिथि भूखा चला जाय।’

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