लोगों की राय

कहानी संग्रह >> वीर बालिकाएँ

वीर बालिकाएँ

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9732

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

152 पाठक हैं

साहसी बालिकाओँ की प्रेरणात्मक कथाएँ

बादशाह कुतुबुद्दीन दूरबीन लगाये दूर से युद्ध देख रहा था। उसने ताजकुँवरि को युद्ध करते देखा तो अपने सिपाहियों से चिल्लाकर बोला- 'जो कोई उस लडकी को जीवित पकड़कर मेरे पास ले आयेगा, उसे मुँह माँगा इनाम दिया जायगा।'

बादशाह की घोषणा सुनकर अनगिनत मुसलमान सैनिक इनाम के लोभ में राजपूतों पर टूट पड़े। राजा सज्जनसिंह और उनके साथी राजपूत सैनिक युद्धमें मारे गये। जब ताजकुँवरि ने देखा कि मुसलमान सैनिक उसके पास आते जा रहे हैं तो उसने लक्ष्मणसिंहसे कहा- 'भैया! अपनी बहिन को बचाओ।'

लक्ष्मणसिंह की आखों में आँसू आ गये। उन्होंने कहा- 'बहिन! अब तुम्हें बचाने का क्या उपाय मेरे पास है?'

ताजकुँवरि ने भाई को ललकारा- 'राजपूत होकर रोते हो भैया! अरे, मेरा शरीर तो कभी-न-कभी मरेगा ही, तुम मेरे धर्म को बचाओ। मुसलमानों के अपवित्र हाथ तुम्हारी बहिन को छूने न पावें।

लक्ष्मणसिंह की समझ में बात आ गयी। उसने तलवार के एक झटके से ताजकुँवरि का सिर शरीर से अलग कर दिया। इसके बाद वह शत्रुओं पर साक्षात् यमराज के समान टूट पड़ा। कितने शत्रु के सैनिकों को मारकर वह गिरा, इसकी कुछ गिनती नहीं। कुतुबुद्दीन विजयी तो हुआ, पर विजय में उसे मिली लाशें और किसोरा का सूना किला।

* * *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book