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प्रेमचन्द की कहानियाँ 2

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :153
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9763

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का दूसरा भाग

अनुक्रम

1. अपने फ़न का उस्ताद
2. अभिनय
3. अभिलाषा
4. अमावस्या की रात्रि
5. अमृत
6. अलग्योझा
7. आँसुओं की होली

1. अपने फन का उस्ताद

जिस जमाने का किस्सा मैं लिखना चाहता हूँ उसके छ: माह पहले कलकत्ता के मशहूर अलायंस बैंक में चोरी हो गई थी। इसमें कोई शक नहीं कि यह चोरी उसी वैंक के खजांची हरेंद्र और उसके सहायक भुवनचंद्र की करतूत थी। चोरी होने के बाद ही से वे दोनों लापता थे। पुलिस ने बहुतेरा सर मारा, मगर अभी तक उनका सुराग़ नहीं मिला।

मैं यूनियन थिएटर का मालिक हूँ। उस जमाने में हमारे डिरामानवीस (नाटककार) हेम वाबू ने एक नाटक 'अज़मत-ए-कश्मीर' के नाम से लिखा था। हालाँकि यह उनकी पहली ही कृति थी, मगर मैं उसे खेलने पर राजी हो गया। उस वक्त मुझे यह फ़िक्र लगी थी कि ऐसी क्या तरकीब करूं कि खेलवाले दिन खूब हुजूम हो। कई दिन सोचते-सोचते मुझे एक तरकीब सूझी, जिसे अमली सूरत में लाने के लिए मैं हेम बाबू से मुलाक़ात करने गया।

सात बजे का वक्त था। हेम बाबू बिस्तर से उतरकर चाय पीने बैठे थे। मुझे देखते ही आग हो गए। बड़ी रुखाई से बोले, ''अब क्या? फिर कहीं रद्दो-बदल कराने चले हो क्या? अगर ऐसा है तो आप सीधे रास्ते वापस जाइए। अब मैं एक लफ़्ज क्या; एक अक्षर तक न बदलूँगा। आपको सौ दफा गरज हो तो मेरा नाटक खेलिए। आपको नाटक क्या दिया, अपने सिर मुसीबत ले ली। सब कामों की एक हद होती है, मगर आपने तो हमारी नाक में दम कर दिया। हमेशा यही लगाए रहते हो कि यहाँ यूँ बना दीजिए, वहाँ से यह निकाल दीजिए। आखिर कोई कहां तक बरदाश्त करे। इससे तो यही बेहतर है कि आप कृपा करके मेरी किताब वापस कर दीजिए। मैं इस खेल से बाज आया।''

मेरी हँसी रोके न रुकती थी। मुझे हँसते देखकर हेम बाबू और भी ज्यादा बिगड़े, ''जी हाँ, खूब हँसिए। हँसने में कुछ खर्च तो होता नहीं। अगर आपको मालूम होता कि ऐसी बातों से लेखक के दिल को कितना सदमा होता है, कितनी आत्मिक पीड़ा होती है..।''

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