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प्रेमचन्द की कहानियाँ 8

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9769

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का आठवाँ भाग


चन्द्रकुंवरि- उनके सारे जीवन की अभिलाषाओं पर ओस पड़ गयी। उदास क्यों न होंगी?

रुक्मिणी- उन्होंने तो देवीजी से यही वरदान मांगा था।

चन्द्रकुंवरि- तो क्या जाति की सेवा गृहस्थ बनकर नहीं हो सकती?

रुक्मिणी- जाति ही क्या, कोई भी सेवा गृहस्थ बनकर नहीं हो सकती। गृहस्थ केवल अपने बाल-बच्चों की सेवा कर सकता है।

चन्द्रकुंवरि- करनेवाले सब कुछ कर सकते हैं, न करनेवालों के लिए सौ बहाने हैं।

एक मास और बीता। विरजन की नई कविता स्वागत का सन्देशा लेकर बालाजी के पास पहुँची परन्तु यह न प्रकट हुआ कि उन्होंने निमंत्रण स्वीकार किया या नहीं। काशीवासी प्रतीक्षा करते-करते थक गये। बालाजी प्रतिदिन दक्षिण की ओर बढते चले जाते थे। निदान लोग निराश हो गये और सबसे अधिक निराशा विरजन को हुई।

एक दिन जब किसी को ध्यान भी न था कि बालाजी आयेंगे, प्राणनाथ ने आकर कहा–बहिन। लो प्रसन्न हो जाओ, आज बालाजी आ रहे हैं।

विरजन कुछ लिख रही थी, हाथों से लेखनी छूट पडी। माधवी उठकर द्वार की ओर लपकी। प्राणनाथ ने हंसकर कहा- क्या अभी आ थोड़े ही गये हैं कि इतनी उद्विग्न हुई जाती हो।

माधवी- कब आयेंगे इधर से ही होकर जायेंगे न?

प्राणनाथ- यह तो नहीं ज्ञात है कि किधर से आयेंगें - उन्हें आडम्बर और धूमधाम से बडी घृणा है। इसलिए पहले से आने की तिथि नहीं नियत की। राजा साहब के पास आज प्रात:काल एक मनुष्य ने आकर सूचना दी कि बालाजी आ रहे हैं और कहा है कि मेरी आगवानी के लिए धूमधाम न हो, किन्तु यहां के लोग कब मानते हैं? अगवानी होगी, समारोह के साथ सवारी निकलेगी, और ऐसी कि इस नगर के इतिहास में स्मरणीय हो। चारों ओर आदमी छूटे हुए हैं। ज्योंही उन्हें आते देखेंगे, लोग प्रत्येक मुहल्ले में टेलीफोन द्वारा सूचना दे देंगे। कालेज और स्कूलों के विद्यार्थी वर्दियां पहने और झण्डियां लिये इन्तजार में खडे हैं घर-घर पुष्प-वर्षा की तैयारियां हो रही हंअ बाजार में दुकानें सजायी जा रहीं हैं। नगर में एक धूम सी मची हुई है।

माधवी- इधर से जायेगें तो हम रोक लेंगी।

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