लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 8

प्रेमचन्द की कहानियाँ 8

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9769

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

30 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का आठवाँ भाग


प्राणनाथ- हमने कोई तैयारी तो की नहीं, रोक क्या लेंगे? और यह भी तो नहीं ज्ञात हैं कि किधर से जायेंगें।

विरजन- (सोचकर) आरती उतारने का प्रबन्ध तो करना ही होगा।

प्राणनाथ- हाँ अब इतना भी न होगा? मैं बाहर बिछावन आदि बिछावाता हूं।

प्राणनाथ बाहर की तैयारियों में लगे, माधवी फूल चुनने लगी, विरजन ने चांदी का थाल भी धोकर स्वच्छ किया। सेवती और चन्द्रा भीतर सारी वस्तुएं क्रमानुसार सजाने लगीं।

माधवी हर्ष के मारे फूली न समाती थी। बारम्बार चौंक-चौंककर द्वार की ओर देखती कि कहीं आ तो नहीं गये। बारम्बार कान लगाकर सुनती कि कहीं बाजे की ध्वनि तो नहीं आ रही है। हृदय हर्ष के मारे धड़क रहा था। फूल चुनती थी, किन्तु ध्यान दूसरी ओर था। हाथों में कितने ही कांटे चुभा लिए। फूलों के साथ कई शाखाएँ मरोड़ डालीं। कई बार शाखाओं में उलझकर गिरी। कई बार साड़ी कांटों में फंसा दीं उसस समय उसकी दशा बिलकुल बच्चों की-सी थी।

किन्तु विरजन का बदन बहुत ही मलिन था। जैसे जलपूर्ण पात्र तनिक हिलने से भी छलक जाता है, उसी प्रकार ज्यों-ज्यों प्राचीन घटनाएँ स्मरण आती थी, त्यों-त्यों उसके नेत्रों से अश्रु छलक पड़ते थे। आह! कभी वे दिन थे कि हम और वह भाई-बहिन थे। साथ खेलते, साथ रहते थे। आज चौदह वर्ष व्यतीत हुए, उनका मुख देखने का सौभाग्य भी न हुआ। तब मैं तनिक भी रोती वह मेरे आँसू पोंछते और मेरा जी बहलाते। अब उन्हें क्या सुधि कि ये आँखें कितनी रोयी हैं और इस हृदय ने कैसे-कैसे कष्ट उठाये हैं। क्या खबर थी की हमारे भाग्य ऐसे दृश्य दिखायेंगे? एक वियोगिन हो जायेगी और दूसरा सन्यासी।

अकस्मात् माधवी को ध्यान आया कि सुवाम को कदाचित बाजाजी के आने की सूचना न हुई हो। वह विरजन के पास आक बोली- मैं तनिक चची के यहॉँ जाती हूँ। न जाने किसी ने उनसे कहा या नहीं?

प्राणनाथ बाहर से आ रहे थे, यह सुनकर बोले- वहॉँ सबसे पहले सूचना दी गयीं भली-भॉँति तैयारियॉँ हो रही है। बालाजी भी सीधे घर ही की ओर पधारेंगे। इधर से अब न आयेंगे।

विरजन- तो हम लोगों को चलना चाहिए। कहीं देर न हो जाए।

माधवी- आरती का थाल लाऊँ?

विरजन- कौन ले चलेगा ? महरी को बुला लो (चौंककर) अरे! तेरे हाथों में रुधिर कहॉँ से आया?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book