कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 13 प्रेमचन्द की कहानियाँ 13प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेरहवाँ भाग
‘तो मुझसे ले लो!’
यह कहकर उसने एक इकन्नी उसकी ओर फेंक दी। सोहन प्रसन्न हो गया। भाई और माता दोनों ही उसे धिक्कारते रहते थे। बहुत दिनों बाद आज उसे स्नेह की मधुरता का स्वाद मिला। इकन्नी उठा ली और धोती को वहीं छोड़कर गाय को खोलकर ले चला। मोहन ने कहा- रहने दो, मैं इसे लिये जाता हूँ।
सोहन ने पगहिया मोहन को देकर फिर पूछा- तुम्हारे लिए चिलम रख लाऊँ?
जीवन में आज पहली बार सोहन ने भाई के प्रति ऐसा सद्भाव प्रकट किया था। इसमें क्या रहस्य है, यह मोहन की समझ में नहीं आया। बोला- आग हो तो रख लाओ।
मैना सिर के बाल खोले आँगन में बैठी घरौंदा बना रही थी। मोहन को देखते ही उसने घरौंदा बिगाड़ दिया और अंचल से बाल छिपाकर रसोईघर में बरतन उठाने चली। मोहन ने पूछा- क्या खेल रही थी मैना?
मैना डरी हुई बोली- कुछ नहीं तो।
‘तू तो बहुत अच्छे घरौंदे बनाती है। जरा बना, देखूँ।’
मैना का रुआंसा चेहरा खिल उठा। प्रेम के शब्द में कितना जादू है! मुँह से निकलते ही जैसे सुगंध फैल गई। जिसने सुना, उसका हृदय खिल उठा। जहाँ भय था, वहाँ विश्वास चमक उठा। जहाँ कटुता थी, वहाँ अपनापा छलक पड़ा। चारों ओर चेतनता दौड़ गई। कहीं आलस्य नहीं, कहीं खिन्नता नहीं। मोहन का हृदय आज प्रेम से भरा हुआ है। उसमें सुगंध का विकर्षण हो रहा है। मैना घरौंदा बनाने बैठ गई। मोहन ने उसके उलझे हुए बालों को सुलझाते हुए कहा- तेरी गुड़िया का ब्याह कब होगा मैना, नेवता दे, कुछ मिठाई खाने को मिले। मैना का मन आकाश में उड़ने लगा। जब भैया पानी माँगे, तो वह लोटे को राख से खूब चमाचम करके पानी ले जाएगी।
‘अम्माँ पैसे नहीं देतीं। गुड्डा तो ठीक हो गया है। टीका कैसे भेजूँ?’
‘कितने पैसे लेगी?’
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